कमरे की सफ़ेद दीवार पे
एक पुराना कैलेंडर टंगा हुआ है
और उन् कागज़ के पन्नो में
सिमटी हुई हैं कुछ यादें
वो घड़ियाँ तो बीत गयी
पर उन् लम्हों की महक ताज़ा है
चाहे जनवरी की ठण्ड में ठिठुरती यादें हो
या जून की गर्मी में झुलसती हुई
कुछ तारीकें
पेंसिल से काटी हुई हैं
उस इंतज़ार की याद में
जो कभी पूरा नहीं हुआ
अखबारवाले के हिसाब से लेकर
कुछ चुनिन्दा लोगों के जन्मदिन तक
सब इस पुराने कैलेंडर के भरोसे ही तो
याद रहता था मुझे
जब भी इस कैलेंडर को देखता हूँ
लगता है जैसे वक़्त थम गया है
महसूस होता है जैसे
बीती तारीखें वापस लौट आई हैं
एक सुकून मिलता है दिल को
के बीता हुआ कल जाते जाते
कुछ सुनहरी तारीखों की
यादें छोड़ गया है